देश में चरवाहा पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। इसका खुलासा ग्वालियर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रैवल मैनेजमेंट (आईआईटीटीएम हेड ऑफिस) द्वारा की गई स्टडी में हुआ है। बता दें कि आईआईटीटीएम हेड ऑफिस ने 2023 में शुरू की गई स्टडी की रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी है।
इस स्टडी में 550 देशी-विदेशी पर्यटकों सहित 450 स्टेक होल्डर (ट्रैवल एजेंट, टूरिस्ट गाइड, ट्रैवल एजेंसी, सरकारी विभाग और होटल) से चर्चा की गई। इसमें 80% लोगों ने चरवाहा पर्यटन के लिए इच्छा जताई है। चरवाहा पर्यटन की शुरुआत के लिए गुजरात, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को चुना गया है। जिसके बाद यह संभव है कि जल्द ही भारत में चरवाहा पर्यटन की शुरुआत हो सकती है। इससे पर्यटक चरवाहों की जीवनशैली करीब से देख और समझ पाएंगे।
बता दें कि इस स्टडी में 5, 7 और 9 दिन का टूर पैकेज प्रपोज किया गया है। जिसमें पर्यटक चरवाहों के साथ रहेंगे। वे चरवाहों की दिनचर्या, काम करने का तरीका और रहन-सहन को करीब से देख सकेंगे जान सकेंगे। पर्यटक चरवाहों के द्वारा बनाया भोजन भी खा सकते हैं या टूर ऑपरेटर से होटल जैसा खाना मंगवा सकते हैं।
मंगोलिया में है चरवाहा पर्यटन का चलन
मंगोलिया खुले मैदान के लिए प्रसिद्ध है। जहां चरवाहे आसानी से यात्रा कर सकते हैं। वे पशुओं को स्वतंत्र रूप से चरा सकते हैं। यही कारण है कि मंगोलिया में पर्यटन काफी प्रचलित है। उसी तर्ज पर अब भारत में भी चरवाहा पर्यटन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।
चरवाहों की आर्ट भी होता है खास
चरवाहे ना केवल अपनी जीवनशैली बल्कि आर्ट के लिए भी प्रसिद्ध हैं। गुजरात का टाई-डाई आर्ट काफी फेमस है। यहां की ब्लॉक प्रिंटिंग भी कपड़े पर दोनों तरफ की जाती है ताकि चरवाहा उस कपड़े का उपयोग दोनों ओर से अधिक दिनों तक कर सकें। साथ ही महिलाएं कढ़ाई-बुनाई भी करती हैं।