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विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में जुड़ेगा नया रस्म

बस्तर दशहरा में अब आगामी वर्ष से एक नया रस्म जुड़ेगा। बस्तर दशहरा में चलने वाले रथ के निर्माण के लिए लगने वाली लकडिय़ों की क्षतिपूर्ति के लिए अब हर वर्ष साल और बीजा के पौधे लगाने का कार्य करने के साथ ही इसे बस्तर दशहरा के अनिवार्य रस्म में जोड़ा जाएगा। यह घोषणा सांसद एवं बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज ने मारकेल में बस्तर दशहरा रथ निर्माण क्षतिपूर्ति पौधरोपण कार्यक्रम की। इस अवसर पर सांसद श्री दीपक बैज ने कहा कि बस्तर दशहरा सामाजिक समरसता के साथ अपने अनूठे रस्मों के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस पर्व में चलने वाला रथ एक महत्वपूर्ण आकर्षण है। इस रथ के निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग किया जाता है, जिसके लिए वृक्षों को काटने की आवश्यकता पड़ती है। बस्तर दशहरा का पर्व सदियों से आयोजित किया जा रहा है और यह आगे भी यह इसी भव्यता के साथ आयोजित होती रहे, इसके लिए हमें भविष्य में भी लकडिय़ों की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि बस्तर की हरियाली को बनाए रखने और बस्तर दशहरा के लिए लकडिय़ों की सतत आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए अब प्रतिवर्ष साल और बीजा के पौधे लगाने का कार्य बस्तर दशहरा के रस्म के तौर पर आयोजित किया जाएगा। यह पर्व मानसून के दौरान हरियाली अमावश्या को प्रारंभ होने के कारण उसी दौरान पौधे लगाए जाएंगे, जिससे इनके जीवन की संभावना और अधिक बढ़ेगी।

सांसद श्री दीपक बैज ने कहा कि इसी स्थान पर पिछले वर्ष 360 पौधे लगाए गए थे, जिनमें मात्र 3 पौधे नष्ट हुए, जिनके स्थान पर नए पौधे लगा दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि साल के पौधरोपण में सफलता का प्रतिशत कम है, किन्तु यहां ग्रामवासियों के सहयोग से वन विभाग ने अत्यंत उल्लेखनीय कार्य किया और यहां 99 फीसदी से भी अधिक पौधे जीवित रहे।

बस्तर में साल का है विशेष महत्व
बस्तर को साल वनों का द्वीप कहा जाता है। यह प्रदेश का राजकीय वृक्ष है तथा बस्तर वासियों के लिए कल्पवृक्ष के समान है। साल का यह वृक्ष अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध है, जो धूप, पानी जैसी मौसमी संकटों का सामना आसानी से कर लेता है। इसकी इन्हीं खुबियों के कारण रेल की पटरी बनाने  में  इसका उपयोग किया जाता था। बस्तर में साल सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

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