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छत्तीसगढ़ बनेगा भारत का अगला बड़ा वाइल्डलाइफ टूरिज्म हब

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छत्तीसगढ़ में बाघों की बढ़ती संख्या अब सिर्फ वन्यजीव प्रेमियों के लिए नहीं, बल्कि टूरिज्म हब के लिए भी नई उम्मीद बनकर उभर रही है। दो साल पहले तक जहां पूरे राज्य में केवल 17-18 बाघ थे, अब इतने ही बाघ अकेले अचानकमार टाइगर रिजर्व में देखे जाने का दावा है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और ओडिशा की सीमाओं से लगे इलाकों में भी चार-पांच बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई है। इन बाघों को स्थायी घर देने के लिए वन विभाग ने तैयारी शुरू कर दी है, जिसमें दो नए कॉरिडोर उदंती से बारनवापारा और गढ़चिरौली से उदंती का नक्शा तैयार किया जा चुका है।

पर्यटन का नया आकर्षण टूरिज्म हब : अचानकमार

छत्तीसगढ़ का अचानकमार अब राज्य का सबसे बड़ा बाघ आवास बन चुका है। यहां एक घायल बाघिन की देखभाल और पुनर्वास के बाद छह शावकों का जन्म हुआ और अब यह इलाका बाघ दर्शन के लिए पर्यटकों का अगला पसंदीदा गंतव्य बन सकता है। बाघिन और उसके शावकों के कई दृश्य कैमरे में कैद हो चुके हैं।

छत्तीसगढ़ बनेगा भारत का अगला बड़ा वाइल्डलाइफ टूरिज्म हब

बाघों के बढ़ते कुनबे के लिए बनेंगे दो नए कॉरिडोर

इंद्रावती, भोरमदेव, गुरु घासीदास-तमोर पिंगला और उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में भी बाघों की उपस्थिति कैमरा ट्रैप से प्रमाणित हो चुकी है। वन विभाग यहां टाइगर साइटिंग ज़ोन विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए कोर एरिया में बसे गांवों को शिफ्ट करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है ताकि पर्यटन को प्राकृतिक माहौल में विकसित किया जा सके।

छह महीने में पर्यटक ग्राम और सफारी सुविधा

अचानकमार, भोरमदेव और गोमा अभयारण्य को पर्यटन विकास की प्राथमिक सूची में रखा गया है। गोमा में प्राकृतिक घास के मैदान हैं, जो कभी राजाओं का शिकारगाह हुआ करते थे। यहां अब 10 कमरों वाला पर्यटक ग्राम और 5-6 जिप्सी सफारी की सुविधा अगले छह महीनों में उपलब्ध होगी। इसी तरह, भोरमदेव अभयारण्य में ऐतिहासिक मंदिरों के साथ वाइल्डलाइफ टूरिज्म को जोड़ा जाएगा।

बाघ कॉरिडोर और वाइल्डलाइफ संरक्षण

वन विभाग अगले एक साल में उदंती-सीतानदी और अचानकमार में बाघों की संख्या बढ़ाने की योजना पर काम शुरू करेगा। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से बाघों का जोड़ा लाकर कैप्टिव ब्रीडिंग के जरिए संख्या बढ़ाई जाएगी। इन बाघों को प्राकृतिक माहौल में धीरे-धीरे जंगल में छोड़ा जाएगा ताकि वे खुद का स्थायी क्षेत्र बना सकें।

ये हैं बाघ कॉरिडोर

कान्हा – अचानकमार: 300 किमी पुराना रास्ता, जहां बाघ कान्हा से आकर कुछ दिन रुकते हैं।

अचानकमार – बांधवगढ़: यहां भी बाघों की आवाजाही कैमरे में दर्ज हो चुकी है।

तमोर पिंगला – पलामू: झारखंड और मध्यप्रदेश से बाघ यहां तक आते हैं और कुछ समय बाद लौट जाते हैं।

उदंती बॉर्डर पर हाल ही में एक ऐसा बाघ देखा गया जिसका रिकॉर्ड नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के पास भी नहीं था। माना जा रहा है कि वह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जंगलों से आया है और यहां के समृद्ध जंगलों में अब स्थायी रूप से ठहर गया है।

कान्हा जैसी साइटिंग अब अचानकमार में

वन विभाग का लक्ष्य है कि अचानकमार को कान्हा रिजर्व जैसी टाइगर साइटिंग डेस्टिनेशन बनाया जाए। रायपुर से इसकी एयर, रेल और रोड कनेक्टिविटी पहले से मौजूद है, जिससे यहां पहुंचना आसान रहेगा। गुरु घासीदास और भोरमदेव को भी समान रूप से विकसित करने की योजना है।

वाइल्डलाइफ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण पांडे का कहना है कि अगले चरण में राज्य के हर प्रमुख अभयारण्य में जिप्सी सफारी और पर्यटक ग्राम विकसित किए जाएंगे ताकि छत्तीसगढ़ भारत का अगला बड़ा वाइल्डलाइफ टूरिज्म हब बन सके।

छत्तीसगढ़ में बाघों की बढ़ती मौजूदगी अब सिर्फ जंगलों की कहानी नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के पर्यटन का नया चेहरा बन रही है जहां प्रकृति, रोमांच और संरक्षण, तीनों का संगम दिखेगा।

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