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सिरपुर – ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता

Sirpur

अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। यह स्थल पवित्र महानदी के किनारे पर बसा हुआ हैं। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। पुरातन काल (सोमवंशी राजाओ का काल) में सिरपुर को `श्रीपुर` के नाम से जाना जाता था तथा यह दक्षिण कोसल की राजधानी थी भारतीय इतिहास में अपने धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का केन्द्र था। इस स्थान पर बने ईटों के बने गुप्तकालीन मन्दिरों के अवशेष हैं जो सोमवंश के नरेशों के अभिलेखों से 8वीं शती के सिद्ध होते हैं। एक अन्य मन्दिर गंधेश्वर महादेव का है। जो महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। सिरपुर से बौद्धकालीन अनेक मूर्तियाँ भी मिली हैं। जिनमें तारा की मूर्ति सर्वाधिक सुन्दर है। सिरपुर का तीवरदेव के राजिम-ताम्रपट्ट लेख में उल्लेख है। 14वीं शती के प्रारम्भ में, यह नगर वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा पर स्थित था।

लक्ष्मण मंदिर के कारण सिरपुर की पहचान दुनियाभर में है। लक्ष्मण मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शेषनाग की प्रतिमा विराजित है। मंदिर कैंपस में लक्ष्मण मंदिर संग्रहालय भी है। तीन संग्रहालय में बहुत सारी ऐतिहासिक मूर्तियां और निर्माण में लगे तराशे हुए पत्थर रखे गए हैं। लक्ष्मण मंदिर का कैंपस बहुत बड़ा है।

कैसे पहुंचें:

बाय एयर
निकटतम हवाई अड्डा रायपुर में है, 74.5 किमी।

ट्रेन द्वारा
निकटतम रेलवे स्टेशन महासमुंद में है।

सड़क के द्वारा
निकटतम बस स्टेशन महासमुंद में है।

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