केरन – अनुच्छेद-370 हटने के 4 साल बाद आज यहां आता है सैलानियों का सैलाब
जम्मू कश्मीर के बॉर्डर क्षेत्र नीलम वैली के पास सीमा के अंतिम गांव केरन में इन दिनों हालात बदले हुए हैं। किशनगंगा नदी के करीब बसा केरन गांव श्रीनगर से 165 किमी दूर है। उत्तरी कश्मीर के इस क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बीते साल ही बॉर्डर टूरिज्म शुरू किया।
केरन गांव ने दुश्मनों की गोलियां झेली हैं। हर घर में बंकर हैं। दो साल पहले सुरक्षा के मद्देनजर सेना ने कम्युनिटी बंकर बनाया, पर कभी इस्तेमाल नहीं हुआ। अब यहां सैलानियों की चहल पहल देखने मिलती है।
नीलम घाटी की औसत ऊंचाई समुद्र तल से 4,000 फुट से 7,500 फुट तक है। किशनगंगा घाटी की लंबाई करीबन 144 किमी की है। मौजूदा नियंत्रण रेखा (एलओसी) इसी घाटी से होकर गुजरती है।
सचमुच जन्नत है केरन
केरन में ही देश का पहला पोस्ट ऑफिस भी है। पोस्टमास्टर शाकिर हुसैन भट्ट बताते हैं,पर्यटन शुरू होने से काफी बदलाव आया है। वीकेंड पर जगह नहीं बचती है, तो लोग पोस्ट ऑफिस में भी आकर सो जाते हैं।
यहां होम स्टे है बेस्ट
महिलाओं ने बताया कि वीकेंड में इतने सैलानी आते हैं कि बमुश्किल व्यवस्था कर पाते हैं। बीते वीकेंड में हमारे घर 26 मेहमान थे। घरों में जगह नहीं थी तो लोग मस्जिदों में रुक गए।
गांव में 200 घरों में होम स्टे सुविधा है। हर घर में औसत 16 लोगों की क्षमता है। 150 से ज्यादा टेंट भी हैं। ठंड और वसंत में यहां की खूबसूरती अतुलनीय होती है। पाइन ट्री से लकदक पहाड़ियां ठंड में सफेद चादर में लिपट जाती हैं, नदी का पानी नीला दिखता है। इसलिए इसे नीलम वैली कहते हैं। ज्यादातर टूरिस्ट सामान लेकर आते हैं और नदी के किनारे खाना पकाते हैं।
जाने से पहले जान लें नियम
केरन में घूमने से पहले कुपवाड़ा के डीसी ऑफिस से मूंजरी लेनी पड़ती है। ऑनलाइन भी मंजूरी मिलती है। मंजूरी मिलने पर 8 फॉर्म मिलते हैं, जो एक-एक कर सात चेकपोस्ट पर जमा करने होते हैं, गांव की चौकी पर पर्यटकों के आई कार्ड भी जमा कर लिए जाते हैं। लौटते वक्त चेकिंग के बाद इन्हें लौटा दिया जाता है। गांव में अब तक इंटरनेट नहीं पहुंचा है। हालांकि कुछ ऊंचाई वाले इलाकों में मोबाइल का सिग्नल मिलता है।