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20 Nov

देश का पहला डिजिटल ट्राइबल म्यूज़ियम

जहां एआई से जीवंत होती हैं आदिवासी नायकों की गाथा

छत्तीसगढ़ ने अपनी जनजातीय विरासत को एक नए रूप में दुनिया के सामने रखा है। शहीद वीर नारायण सिंह स्मारक एवं जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय अब देश का पहला ऐसा डिजिटल ट्राइबल म्यूज़ियम बन गया है, जहां परंपरा, इतिहास और तकनीक एक साथ सांस लेते दिखाई देते हैं। यहां पहुंचते ही दर्शकों को लगता है जैसे वे किसी जीवंत कहानी में कदम रख रहे हों।

स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय संघर्षों का सजीव चित्रण

संग्रहालय में कदम रखते ही हल्बा विद्रोह, पारलकोट आंदोलन, भूमकाल क्रांति और रानी चो-रिस आंदोलन जैसे बड़े जनजातीय विद्रोह की झलकियां सामने आती हैं।
1857 के गदर के वीर, शहीद वीर नारायण सिंह को समर्पित भाग खास तौर पर प्रभावित करता है। उनके साथ ही झाड़ा सिरहा जैसे कम चर्चित लेकिन अद्भुत साहस दिखाने वाले नायकों की कथाएं भी यहां पहली बार इतने विस्तृत रूप में देखने को मिलती हैं।

देश का पहला डिजिटल ट्राइबल म्यूज़ियम

14 थीम आधारित गैलरियां: जनजातीय जीवन का पूरा संसार

म्यूज़ियम की 14 थीम आधारित गैलरियाँ जनजातीय जीवन के हर रंग को सामने लाती हैं बस्तर की घोटुल परंपरा, पारंपरिक शिकार-पद्धति, खेती, मत्स्य पालन, लोकनृत्य और संगीत, लोक-उपचार, नवाखानी-उरिदखानी जैसे धार्मिक अनुष्ठान इतना ही नहीं, मराठा काल की सुबे व्यवस्था और अंग्रेजों के दौर की बेगार प्रथा जैसे ऐतिहासिक अध्याय भी यहां विस्तार से दर्ज हैं।

होलोग्राम, एआई फोटो बूथ, डिजिटल स्क्रीन, ऑडियो-वीडियो इंस्टालेशन जैसी तकनीकें अनुभव को और सजीव बना देती हैं।

देश का पहला डिजिटल ट्राइबल म्यूज़ियम: 650 से अधिक मूर्तियां

लगभग 9.75 एकड़ में फैला यह संग्रहालय 53.13 करोड़ की लागत से तैयार हुआ है।
650 से ज्यादा मूर्तियों, 3डी प्रोजेक्शन, एआई-आधारित डिस्प्ले और आधुनिक डिजिटल गैलरियों के साथ यह भारत सरकार की ओर से स्थापित किए जा रहे 11 जनजातीय संग्रहालयों में सबसे प्रमुख कड़ी माना जा रहा है। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 नवंबर 2025 को राष्ट्र को समर्पित किया था।

आदि संस्कृति का केंद्र

जनजातीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा के अनुसार, यह सिर्फ एक इमारत नहीं बल्कि मंच है जहां छत्तीसगढ़ की 43 अनुसूचित जनजातियों की पहचान, परंपराएँ और ज्ञान संरक्षित हो रहे हैं। यह स्थान रिसर्च, प्रशिक्षण और स्थानीय आजीविका बढ़ाने का केंद्र भी बनेगा। महिला स्व-सहायता समूहों की भागीदारी कैंटीन संचालन से लेकर अन्य सेवाओं तक इस पहल को और भी सामाजिक आधार देती है।

संग्रहालय आदि संस्कृति परियोजना और एआई आधारित भाषा संरक्षण प्लेटफॉर्म आदि वाणी से भी जुड़ा है, जिसके जरिए गोंडी, भीली और मुंडारी जैसी भाषाओं को डिजिटल तौर पर सुरक्षित किया जा रहा है।

आधुनिक तकनीक और परंपरा का संगम

शहीद वीर नारायण सिंह संग्रहालय सिर्फ इतिहास नहीं दिखाता, बल्कि यह बताता है कि परंपरा को आधुनिक तकनीक के सहारे कितनी खूबसूरती से आगे बढ़ाया जा सकता है। यह छत्तीसगढ़ की जनजातीय पहचान को नए आत्मविश्वास के साथ राष्ट्रीय और वैश्विक मंच पर ले जाने की बड़ी पहल है।