/ India  / Chhattisgarh  / अध्यात्म की नगरी आरंग का है राजा मोरध्वज से कनेक्शन
King Mordhwaj
7 Feb

अध्यात्म की नगरी आरंग का है राजा मोरध्वज से कनेक्शन

अध्यात्म की नगरी आरंग का है राजा मोरध्वज से कनेक्शन, जिन्होंने दी थी अपने बेटे की बलि

आरंग अब राजा मोरध्वज नगर के नाम से जाना जाएगा। संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इसकी घोषणा की है। पर्यटन मंत्री राजा मोरध्वज महोत्सव के समापन अवसर पर घोषणा की कि उन्होंने कहा कि आरंग और आस-पास के क्षेत्रों में बिखरे पुरातात्विक अवशेषों को सहेजने के लिए 25 लाख रूपए की लागत से अध्यात्म की नगरी आरंग में संग्रहालय बनाया जाएगा। उन्होंने राजा मोरध्वज महोत्सव को भव्य स्वरूप देने के लिए प्रत्येक वर्ष 5 लाख रूपए देने की भी घोषणा की।

संस्कृति मंत्री अग्रवाल ने संबोधित करते हुए कहा कि राजा मोरध्वज का जीवन हमें बहुत कुछ सबक देता है। अगर हम धर्म के रास्ते पर चलेंगे और वादों के पक्के रहेंगे तो भगवान भी हमारा साथ देंगे। उन्होंने कहा कि राजा मोरध्वज एक न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजा थे। जिन्होंने अपना वचन निभाने के लिए अपने बेटे को आरी से कटवा दिया था, जिसके कारण इस शहर को आरंग नाम मिला।

अध्यात्म की नगरी आरंग का है राजा मोरध्वज से कनेक्शन

अध्यात्म की नगरी आरंग – राजा मोरध्वज – जिन्होंने दी थी अपने बेटे की बलि

समापन अवसर पर स्थानीय कलाकारों ने नाटक का मंचन कर राजा मोरध्वज और भगवान कृष्ण के संवाद को जीवंत किया जिसने सभी का दिल जीत लिया। महोत्सव का आयोजन विधायक गुरु खुशवंत साहेब के मार्गदर्शन में किया गया।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 36 किलोमीटर दूर दानवीर राजा मोरध्वज की अध्यात्म की नगरी आरंग नगरी आरंग स्थित है। आरंग के बस स्टैंड में रानी पद्मावती और राजा मोरध्वज के द्वारा अपने बेटे ताम्रध्वज को आरा से चीरते हुए मूर्तिकला से प्रदर्शित किया गया है। इतिहासकारों की मानें तो महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने अश्वमेघ यज्ञ करने का ऐलान किया।

इस यज्ञ का विधान होता था कि एक घोड़े को स्वच्छंद विचरण करने के लिए छोड़ दिया जाता था और यदि उस अश्व को किसी ने पकड़ लिया तो यह माना जाता था कि वह युद्ध के लिए चुनौती दे रहा है। पांडवों द्वारा छोड़े गए घोड़े को राजा मोरध्वज ने पकड़ लिया। इससे अर्जुन क्रोधित हो गए और युद्ध करने पर उतारू हो गए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को रोका और राजा मोरध्वज की विशेषताएं बताईं। दोनों ने मिलकर राजा की दानशीलता और त्याग की परीक्षा ली।

संत के भेष में श्रीकृष्ण ने कहा- राजन! मेरा शेर अर्से से भूखा है। इसे मांस चाहिए. मोरध्वज ने कहा इसे मैं भोजन अवश्य कराउंगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि मेरे सिंह को मानव मांस चाहिए। राजा ने अपना शरीर समर्पित करने आगे आए मगर तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इस शेर को तुम्हारे पुत्र का ही मांस चाहिए। राजा ने तत्काल बेटे के सिर पर आरे से वार कर दिया। इस तरह वह परीक्षा में पास हो गए और मोरध्वज के बेटे ताम्रध्वज भी पुनर्जीवित हो गए।