गुजरात के इस गांव को UN से मिला ‘सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव’ का सम्मान, जानें क्या है इसकी खासियत?
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा गुजरात के धोर्डो को संयुक्त राष्ट्र के विश्व पर्यटन संगठन द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव’ के रूप में सम्मानित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले ही इस अज्ञात दूरस्थ स्थान को एक नए पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया।
उन्होंने पर्यटन आकर्षण के रूप में कच्छ के सफेद रण की क्षमता की पहचान की और सर्दियों में एक ‘तंबू शहर’ की स्थापना कर इस गांव में रण उत्सव की शुरुआत की।
प्रारंभिक वर्षों में रण उत्सव को बढ़ावा देने के लिए मोदी व्यक्तिगत रूप से यहां का दौरा करते थे और उसमें रहते थे।

करीब 100 दिन चलता है गुजरात का रण उत्सव
पहले रण उत्सव महज 3 दिन के लिए होता था, लेकिन धोर्डो में यह लगभग 100 दिवसीय उत्सव में बदल गया। इस उत्सव के लिए एक नया तंबू शहर बनाया गया है। रण उत्सव भारत के सबसे बेहतरीन पर्यटन कार्यक्रमों में से एक है, जो सफेद रेगिस्तान में प्रकृति की सुंदरता और कच्छ की समृद्ध सांस्कृतिक कला को और भी आकर्षक बना देता है।
इस बार कब है रण उत्सव?
लगभग 4 महीने तक चलने वाला रण उत्सव एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जो धोर्डो में 7,000 वर्ग मील के विशाल क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। इस उत्सव में सफेद रेत के विशाल मैदान में 400 शानदार तंबू लगते हैं। यहां लाइव सांस्कृतिक प्रदर्शन और कच्छ के व्यंजनों का आनंद लिया जा सकता है। इस वर्ष यह उत्सव 10 नवंबर, 2023 से शुरू होकर 25 फरवरी, 2024 तक चलने वाला है।

धोर्डो कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग: धोर्डो के सबसे नजदीक हवाई अड्डा लगभग 80 किलोमीटर दूर भुज में है, जबकि निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अहमदाबाद में 384 किलोमीटर की दूरी पर है।
रेल मार्ग: इसका निकटतम रेलवे स्टेशन भुज रेलवे स्टेशन है, जो इस पर्यटन स्थल से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग: कच्छ के रण के किनारे पर स्थित धोर्डो शहरों से बहुत दूर है, लेकिन भुज, अहमदाबाद और गुजरात के अन्य शहरों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
चक्रधर समारोह : 3 साल बाद हो रहा आयोजित
आगामी 19 सितंबर 2023 से आरंभ हो रहे तीन दिवसीय चक्रधर समारोह की तैयारी पूरी हो गई है। इस बार आयोजन में स्थानीय कलाकारों की चमक बिखरेगी। खैरागढ़ विवि की टीम विशेष प्रस्तुति देगी। बता दें कि वर्ष 2020 के बाद तीन सालों तक चक्रधर समारोह का आयोजन रुक गया था। इस साल पुन: उसी गरिमा के साथ समारोह का आयोजन नगर निगम ऑडिटोरियम में होने वाला है। कलाकारों को लेकर निर्णय लेने के लिए कई बार बैठकें हुई हैं।
तीन दिवसीय होगा कार्यक्रम

चक्रधर समारोह में शामिल होंगे स्थानीय कलाकार
इस बार आयोजन 19 सितंबर से 21 सितंबर तक होने वाला है। इसके लिए कलाकार चयन का काम तकरीबन फाइनल हो चुका है। बता दें कि इस बार राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर के शीर्षस्थ कलाकारों ने प्रस्तुति दी है। इस वर्ष छत्तीसगढ़ की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए यहां के आयोजनों में लोकल कलाकारों को ही मौका देने का निर्णय लिया गया है। क्लासिकल और पॉपुलर दोनों तरह के संगीत के कार्यक्रम होंगे।
माउस डियर – कांगेर घाटी में दिखा अब सबसे छोटे कद का हिरण…
छत्तीसगढ़ में बस्तर स्थित विख्यात कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में अब दुर्लभ प्रजाति ‘माउस डियर’ की तस्वीर कैमरा ट्रेप में कैद हुई है। हाल ही में वहां राष्ट्रीय उद्यान में संकटापन्न जंगली भेडिय़ों की वापसी के साथ-साथ इससे लगे गांवों तक छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी ‘पहाड़ी मैना’ की भी मीठी बोली गूंजने लगी है। यह वन विभाग की पहल से वन्यजीवों के सुरक्षित रहवास के लिए हो रहे कार्यों के सकारात्मक परिणाम को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में पाए जाने वाले हिरणों की 12 प्रजातियों में से माउस डियर विश्व में सबसे छोटे हिरण समूह की प्रजाति में से एक है।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा लगातार वन्यजीवो के संरक्षण की दिशा में कार्य करने से दुर्लभ प्रजातियों का रहवास सुरक्षित हुआ है। निदेशक, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान श्री धम्मशील गणवीर ने बताया कि हाल ही में राष्ट्रीय उद्यान में दुर्लभ प्रजाति माउस डियर की तस्वीर कैमरा ट्रेप में कैद हुई है।
माउस डियर – कांगर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में दिखा अब सबसे छोटे कद का हिरण…

भारतीय माउस डियर रहवास विशेष रूप से घने झाडिय़ों वालो नमी वाले जंगलों में होता है। माउस डियर में चूहे-सुअर और हिरण के रूप और आकार का मिश्रण दिखाई देता है और बिना सींग वाले हिरण का एकमात्र समूह है। इनके शर्मीले व्यवहार और रात्रिकालीन गतिविधि के कारण इनमें विशेष रिसर्च नही हुआ है। मुख्य रूप से दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वनों में माउस डियर की उपस्थिति दर्ज हुई है। वनों में लगने वाली आग, बढ़ते हुए अतिक्रमण और शिकार के दबाव से आबादी को शायद गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान में इन प्रजातियों को बचाने के प्रयास की आवश्यकता है।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में ऐसे वन्यजीव के लिए उपयुक्त रहवास होने से और राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा वन्य जीवों के संरक्षण हेतु लगातार चलाए जा रहे जागरूकता अभियान और स्थानीय लोगों की सहभागिता से इस जैसे दुर्लभ प्रजातियों की वापसी देखे जाने से राज्य शासन की वन्यजीव संरक्षण का उद्देश्य साकार हो रहा है। इससे पर्यटक आकर्षित होंगे तथा राष्ट्रीय उद्यान में सैलानियों की संख्या और अधिक बढ़ेगी।