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माउस डियर - कांगेर घाटी में दिखा अब सबसे छोटे कद का हिरण… -
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Kanger Valley National Park
1 Jun

माउस डियर – कांगेर घाटी में दिखा अब सबसे छोटे कद का हिरण…

छत्तीसगढ़ में बस्तर स्थित विख्यात कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में अब दुर्लभ प्रजाति ‘माउस डियर’ की तस्वीर कैमरा ट्रेप में कैद हुई है। हाल ही में वहां राष्ट्रीय उद्यान में संकटापन्न जंगली भेडिय़ों की वापसी के साथ-साथ इससे लगे गांवों तक छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी ‘पहाड़ी मैना’ की भी मीठी बोली गूंजने लगी है। यह वन विभाग की पहल से वन्यजीवों के सुरक्षित रहवास के लिए हो रहे कार्यों के सकारात्मक परिणाम को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में पाए जाने वाले हिरणों की 12 प्रजातियों में से माउस डियर विश्व में सबसे छोटे हिरण समूह की प्रजाति में से एक है।


कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा लगातार वन्यजीवो के संरक्षण की दिशा में कार्य करने से दुर्लभ प्रजातियों का रहवास सुरक्षित हुआ है। निदेशक, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान श्री धम्मशील गणवीर ने बताया कि हाल ही में राष्ट्रीय उद्यान में दुर्लभ प्रजाति माउस डियर की तस्वीर कैमरा ट्रेप में कैद हुई है।

माउस डियर – कांगर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में दिखा अब सबसे छोटे कद का हिरण…

माउस डियर - कांगेर घाटी में दिखा अब सबसे छोटे कद का हिरण…


भारतीय माउस डियर रहवास विशेष रूप से घने झाडिय़ों वालो नमी वाले जंगलों में होता है। माउस डियर में चूहे-सुअर और हिरण के रूप और आकार का मिश्रण दिखाई देता है और बिना सींग वाले हिरण का एकमात्र समूह है। इनके शर्मीले व्यवहार और रात्रिकालीन गतिविधि के कारण इनमें विशेष रिसर्च नही हुआ है। मुख्य रूप से दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वनों में माउस डियर की उपस्थिति दर्ज हुई है। वनों में लगने वाली आग, बढ़ते हुए अतिक्रमण और शिकार के दबाव से आबादी को शायद गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान में इन प्रजातियों को बचाने के प्रयास की आवश्यकता है।

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में ऐसे वन्यजीव के लिए उपयुक्त रहवास होने से और राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा वन्य जीवों के संरक्षण हेतु लगातार चलाए जा रहे जागरूकता अभियान और  स्थानीय लोगों की सहभागिता से इस जैसे दुर्लभ प्रजातियों की वापसी देखे जाने से राज्य शासन की वन्यजीव संरक्षण का उद्देश्य साकार हो रहा है। इससे पर्यटक आकर्षित होंगे तथा राष्ट्रीय उद्यान में सैलानियों की संख्या और अधिक बढ़ेगी।